
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के रसड़ा विधानसभा अध्यक्ष श्री अंशु राजभर की शिकायत पर क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी, वाराणसी द्वारा स्वयं महाविद्यालय की ग्राम नगहर स्थित जमीन का स्थलीय निरीक्षण किया गया जिसमें महाविद्यालय की जमीन पर प्राचार्य धनंजय सिंह और चपरासी गंभीर सिंह द्वारा अवैध खनन कराए जाने और निजी आय के लिए उक्त भूमिं के व्यावसायिक उपयोग और कई एकड़ जमीन में फसल उत्पादन द्वारा निजी कमाई किए जाने के आरोपों को प्रथमदृष्टया सत्य पाए जाने पर उनके द्वारा इसकी विस्तृत जांच।
चाणक्य इण्डिया, स्टाफ रिपोर्टर लखनऊ।बलिया जनपद के रसड़ा नगर क्षेत्र में स्थित मथुरा डिग्री कॉलेज एक अनुदानित महाविद्यालय है जिसके प्रबंधक क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी वाराणसी हैं। अध्ययन-अध्यापन के लिए प्रसिद्ध यह कॉलेज वर्तमान में कार्यवाहक प्राचार्य डॉ0 धनंजय सिंह और चपरासी के पद पर कार्यरत गंभीर सिंह द्वारा मिलीभगत कर कॉलेज की ग्राम नगहर स्थित लगभग 20 एकड़ जमीन पर निजी आय के लिए अवैध खनन कराए जाने और गेहूं, सरसों, सब्जी आदि की फसल उगाकर अवैध कमाई करने एवं कॉलेज की कई एकड़ जमीन व्यावसायिक उपयोग हेतु लीज पर देने के आरोपों के कारण चर्चा में है।
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के रसड़ा विधानसभा अध्यक्ष श्री अंशु राजभर की शिकायत पर क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी, वाराणसी द्वारा स्वयं महाविद्यालय की ग्राम नगहर स्थित जमीन का स्थलीय निरीक्षण किया गया जिसमें महाविद्यालय की जमीन पर प्राचार्य धनंजय सिंह और चपरासी गंभीर सिंह द्वारा अवैध खनन कराए जाने और निजी आय के लिए उक्त भूमिं के व्यावसायिक उपयोग और कई एकड़ जमीन में फसल उत्पादन द्वारा निजी कमाई किए जाने के आरोपों को प्रथमदृष्टया सत्य पाए जाने पर उनके द्वारा इसकी विस्तृत जांच हेतु डॉ0 अमित कुमार सिंह, प्राचार्य, राजकीय महाविद्यालय, बलिया की अध्यक्षता में एक त्रिसदस्यीय जांच समिति गठित की गई है जिसमें डॉ0 बैकुण्ठ नाथ पाण्डेय, प्राचार्य, सतीश चंद्र कॉलेज बलिया एवं डॉ0 रविन्द्र नाथ मिश्रा, प्राचार्य, श्री मुरली मनोहर स्नातकोत्तर महाविद्यालय को सदस्य बनाया गया है।

शिकायत कर्ता श्री अंशु राजभर द्वारा मुख्यमंत्री को प्रेषित अपने पत्र में जांच समिति के सदस्य डॉ0 रविन्द्र नाथ मिश्रा पर आरोपी धनंजय सिंह का बचाव किए जाने और पूर्व की भांति ही इस जांच में भी धनंजय सिंह के पक्ष में लीपापोती करने का आरोप लगाया है। बताते चलें कि डॉ0 धनंजय सिंह के विरुद्ध इससे पूर्व भी कुलपति, जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया एवं क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी, वाराणसी द्वारा गठित दो अलग अलग जांच समितियों में अध्यक्ष और जांच अधिकारी रहते हुए डॉ0 रविन्द्र नाथ मिश्रा द्वारा आरोपी का पक्षपोषण करने और तथ्यों व साक्ष्यों के विपरीत धनंजय सिंह के पक्ष में जांच आख्या प्रस्तुत करने का आरोप लगाया गया है। अब देखना है कि पूर्व की ही भांति इस जांच समिति द्वारा भी आरोपी धनंजय सिंह और गंभीर सिंह को बचाने के लिए जाँच के नाम पर पुनः केवल लीपापोती ही की जाती है या फिर आरोपों के सम्बन्ध में कोई साक्ष्य आधारित तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।यही नहीं तीस लाख से अधिक के आर्थिक भ्रष्टाचार में डाॅ धनन्जय सिंह को प्राचार्य पद से पदच्युत कर दिया गया था।
किन्तु आर्थिक भ्रष्टाचार को दरकिनार करते हुए क्षेत्रीय कार्यालय की मिलीभगत से डाॅ धनन्जय सिंह के प्राचार्य पद से पदच्युत होने के मामले को सिनियारिटी का मुद्दा बना दिया गया और माननीय उच्च न्यायालय प्रयागराज से सिनियारिटी के आधार पर पदच्युत होने का निर्णय हो गया , जब कि पदच्युति आर्थिक भ्रष्टाचार के मामले में हुआ था और आज भी उस भ्रष्टाचार में क्लीन चिट नहीं मिली है। क्षेत्रीय अधिकारी वर्मा ने जिन भ्रष्टाचार के आधारों पर हटाया था क्या उनके पास डॉ धनन्जय सिंह के मुक्त होने का कोई प्रमाण है? यदि नहीं तो क्या फिर वह प्राधिकृत नियंत्रक होने के बावजूद भी जांच पर जांच बैठाकर भ्रष्टाचार में शामिल हैं?


खनन सम्बंधित भ्रष्टाचार में प्रथम दृष्टया पुष्टि के बावजूद भ्रष्टाचार व कदाचार में हिस्सेदारी लेकर जांच में लिपापोती करते हुए डॉ धनन्जय सिंह को क्लीन चिट दे चुके डॉ रविन्द्र मिश्रा को पुनः जांच समिति में रखना क्षेत्रीय अधिकारी डॉ वर्मा जो प्राधिकृत नियंत्रक है, के नैतिक दायित्व पर प्रश्न चिन्ह नहीं खड़ा होता है? क्या उन्हें प्राधिकृत नियंत्रक का दायित्व मथुरा महाविद्यालय रसड़ा को लूटने व लुटवाने के लिए दिया गया था? कालेज की परिसम्पत्तियों को लूटने की गरज से आए लोगों ने ही इस भ्रष्ट प्राचार्य डॉ धनन्जय सिंह का चयन एक ऐसे सलेक्शन कमेटी के एक्सपर्ट से करा दिया था जो सेलेक्शन की तिथि के पूर्व ही मर चुका था। इन तथ्यों को क्षेत्रीय अधिकारी जानते हैं । एक कर्मचारी को मारने और एक शिक्षक को रिवाल्वर दिखाने और भद्दी भद्दी गाली देने के मामले में भी डॉ वर्मा और डॉ रविन्द्र मिश्रा बचा चुके हैं। पहले से कार्य कर रहे कर्मचारियों का रजिस्टर से नाम फाड़ने जबकि मामला उसी माननीय उच्च न्यायालय प्रयागराज में लंबित है,बार बार कर्मचारियों और शिक्षकों को रिवाल्वर दिखाने, लाखों के गमन के आरोपी, कालेज के भूमि पर खनन और व्यावसायिक इस्तेमाल के बावजूद डॉ धनन्जय सिंह को बचाने की बार बार कवायद से क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी, वाराणसी डॉ वर्मा की भी इस भ्रष्टाचार में लम्बी हिस्सेदारी और संलिप्तता प्रतीत होती है।
जो इतने संगीन अपराधों का वाहक है उसके प्राचार्य रहते किसी भी मामले की निष्पक्ष जाँच संभव नहीं है। माननीय उच्च न्यायालय प्रयागराज ने भी उन्हें सिनियर बताया है, परन्तु वित्तीय अनियमितता के प्रकरण में उनके विरुद्ध जांच अभी भी लंबित बताया गया है । परन्तु कार्यवाही करने के बजाय क्षेत्रीय अधिकारी द्वारा धनंजय सिंह को बैक डेट से ही पुनः प्राचार्य पर दे दिया गया। अतः इस भ्रष्ट प्राचार्य को पद से हटाकर मामले की निष्पक्ष जाँच करायी जाए और प्राचार्य सहित मामले की लिपापोती करने वालों पर कठोर दण्डात्मक कार्यवाही की जाए।-
Ashok Malik
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